Monday, July 15, 2013

छोटी सी आशा

कमाठीपुरा के छोटे से अंधियारे कमरे में रहती है वो। उम्र 17 , पांचवीं पास। अखबार वो पढ़ती नहीं।बस टीवी देखती है। आये दिन सुनती है 'gang rape' की खबरें। उसके लिए इसमें रोज़मर्रा से अलग क्या था।हुंह ,औरत तो हमेशा भोग्या ही रही है। वोह भी तो रोज़ परसती है इस जिस्म को कभी 7-8, कभी 8-10 पुरुषों के आगे।पहले पहल रोती थी कलपती थी। मन फड़फड़ा कर उड़ जाना चाहता था। हर तरह के पुरुष आते थे।तरह तरह की यातनाओं से गुज़ारना पड़ता था उसे।शरीर के साथ आत्मा को भी लील जाते थे। अब शरीर सुन्न पड़ गया है उसका। आँखें मींचे , मुट्ठियाँ भींचे बस पल गुज़र जाने का इंतज़ार करती है वो।
उसके लिए पुरुष होता ही है ऐसा, लिजलिज़ा सा।बाप भी था न ऐसा ही।शराब के नशे में रोज़ माँ को मारता पीटता, उसकी हड्डियां चिंचोड़ता। वह सहम कर आँख व कान बंद कर लेती।उसे रात कभी अच्छी नहीं लगी। क्यूंकि रात माँ की चीखों से दम तोडती।न उसने, न कभी बड़े भाई ने माँ को बचाने की कोशिश की।हमेशा से ऐसा ही देखा, कुछ भी , कभी बदला नहीं।
15 साल की उम्र थी जब बाप ने लंगड़े चाचा के साथ बम्बई भेज दिया था नौकरी करने को।माँ कातर दृष्टि से देखती रह गयी थी। शायद जानती थी की कहाँ जा रही है।लंगड़े चाचा ने सोंप दिया था उसे आंटी को। तब से यहीं है।
उसके लिए मरद सब एक से हैं। बाप, भाई, पड़ोस का भोंदू,,सब ...
हाँ टीवी में जो रोज़ गैंग rape के किस्से दिखाते हैं , उसे देख कभी मन कैसा कैसा हो जाता है।जो हर रोज़ 17 वर्ष की आयु में वह भोग रही है क्या वह gang rape नहीं है।फिर क्यूँ उसके लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता। क्यूँ इसको 'धंदा ' कह कर मूह फेर लेते हैं लोग।
दूर कहीं चर्च का घंटा बजा। क्या कोई मसीहा उसके लिए भी उतर कर आएगा। कोई मसीहा, जो बस इतना कर दे, उसे खींच ले जाए ऐसी दुनिया में 'जहां मरद का साया तक न हो।'जहां वो रात को सोये तो यह डर न सताए की अभी कोई दरिंदा उसे खींच ले जाएगा नोचने, खसोटने को।जहां वो सुख की नींद सो सके ,बिना डर .. बिना दहशत ...उसकी मुंदती पलकों में एक छोटी सी आशा जन्म ले रही थी.............poonam dogra

1 comment:

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